हरियाणा में तीसरी बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने के लिए भाजपा के रणनीतिकार पूरी तरह से तैयार हैं। रोजाना होने वाली बैठकों में संघ के साथ तालमेल बढ़ाकर विजेता लोगों की खोज की जा रही है और कांग्रेस के हमलों का जवाब देने की तैयारी की जा रही है।
पार्टी वर्तमान विधायकों की भूमिका बदल सकती है ताकि एंटी इन्कमबेंसी (सत्ता विरोधी लहर) का प्रभाव कम हो जाए। भाजपा विधानसभा चुनाव में जातीय समीकरण और पार्टी की जीत की कसौटी पर खरा उतरने वाले उम्मीदवारों पर दाव खेलेगी, न कि कोटे पर।
टिकट दावेदारों की जांच की जा रही कुंडली
भाजपा में उम्मीदवारों की खोज के लिए सर्वे एजेंसियां क्षेत्र से ही सूचना जुटा रही हैं, लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेता भी अपने-अपने स्रोतों से पूरी कुंडली को देख रहे हैं। 2019 में हुए चुनाव के दौरान भाजपा ने 75 से अधिक सीटों का दावा किया था, लेकिन उसे सिर्फ 40 विधानसभा सीट मिलीं।
कांग्रेस ने उस समय गंभीरता से विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा, क्योंकि उसे लगता था कि भाजपा सरकार बन जाएगी। भाजपा ने इस बार लोकसभा चुनाव में अपनी उम्मीदों को पूरा नहीं किया है।
राज्य की 10 लोकसभा सीटों में से 5 पर कांग्रेस ने जीत हासिल की है, जबकि 5 पर भाजपा ने जीत हासिल की है। दोनों दल कुछ टिकटों के आवंटन पर बहस कर रहे हैं।
लोकसभा से सबक लेके बिधान सभा मे हो रही है तैयार
भाजपा के रणनीतिकारों का मानना है कि अगर सिरसा, हिसार और सोनीपत की सीटों पर टिकटों का बंटवारा पार्टी कार्यकर्ताओं की भावनाओं के अनुरूप होता तो जीत का आंकड़ा आठ सीटों तक पहुंच सकता था। कांग्रेस के रणनीतिकारों भी इसी तरह सोचते हैं। उनका मानना है कि कांग्रेस कुरुक्षेत्र सीट को आम आदमी पार्टी को देने की बजाय खुद लड़ती तो जीत सकती थी, जबकि करनाल में कोई मजबूत व्यक्ति चुनाव में उतरता।