दिल्ली: अब एमसीडी की बढ़ेगी आमदनी। कूड़े से गैस बनाने वाले प्लांट को क्लीनशीट , गाजीपुर बेसिओ के लिए सुखबरी

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अब गाजीपुर लैंडफिल पर कूड़े का दबाव कम होने का अनुमान लगाया जा रहा है। यहां हर दिन लगभग 350 मीट्रिक टन कूड़ा संपीड़ित बायो गैस और सीएनजी बनाया जाएगा। MDAGL इसके लिए एक समझौता करने जा रही है। 10 एकड़ की जमीन पर मिथेनाइजेशन प्लांट गाजीपुर की पॉकेट-छह में बनाया जाएगा। यह दिलचस्प है कि एमसीडी इस पर कुछ खर्च नहीं करेगा या आय नहीं करेगा, लेकिन इससे उसकी कूड़ा प्रबंधन क्षमता बढ़ जाएगी। पिछले महीने एमसीडी को स्थान देने के बाद मंगलवार को डीडीए की बोर्ड बैठक में भू-उपयोग में भी बदलाव किए गए।
एमसीडी ने पहले ही गाजीपुर में मिथेनाइजेशन प्लांट बनाने का प्रस्ताव बनाया था। पूर्वी दिल्ली से हर दिन निकलने वाले लगभग ढाई हजार मीट्रिक टन कूड़े का निपटान इसमें शामिल था। इसकी मात्रा लगभग 350 मीट्रिक टन है। एमसीडी ने इसके लिए डीडीए से जमीन मांगी थी। वहीं, उसको आईजीएल से प्लांट लगाने और चलाने का अनुबंध करना होगा। जमीन प्राप्त होने के बाद अब एमसीडी अपनी अगली बैठक में प्रस्ताव प्रस्तुत करेगी। सदन से मंजूरी मिलने पर प्लांट लगाने का काम शुरू होगा।
एमसीडी ने कहा कि वह प्लांंट लगवाने में एक रुपये भी नहीं खर्च करेगी। उसे इससे कोई आय भी नहीं होगी, लेकिन इससे कूड़ा प्रबंधन की उसकी क्षमता बढ़ेगी। प्लांट आईजीएल अपने खर्च पर लगाएगी और उसे उत्पादित गैस बेेचने का अधिकार होगा। GAIL गैस बेचने से आय प्राप्त करेगा। दैनिक रूप से 350 मीट्रिक टन कूड़ा इसमें गलाया जाएगा। एमसीडी के एक अधिकारी ने कहा कि निगम को आईजीएल की शर्त मानने में कोई समस्या नहीं है। कूड़ा प्रबंधन क्षमता का विस्तार इसकी सबसे बड़ी वजह है। प्लांट लगाने से पूर्वी दिल्ली से हर दिन लगभग 2500 मीट्रिक टन कूड़ा निकाला जा सकता है।
एमसीडी ने इलाके में एक डेयरी कॉलोनी होने के कारण तीन एकड़ में गोबर से गैस बनाने वाला प्लांट लगाने का फैसला किया। उसने इस प्लांट के लिए हर दिन सौ मीट्रिक टन गोबर चाहिए था, लेकिन इतना गोबर नियमित रूप से नहीं मिलता था, इसलिए उसने कूड़े से गैस बनाने वाला प्लांट लगाया। IGL ने तीन एकड़ की जमीन पर यह प्लांट लगाने से इनकार कर दिया। प्लांट लगाने के लिए कम से कम दसवीं एकड़ जमीन की आवश्यकता होगी, उसने कहा। यही कारण था कि एमसीडी ने डीडीए से दसवीं एकड़ जमीन मांगी और इस जमीन का उपयोग बदलने का भी अनुरोध किया। डीडीए ने उसकी दोनों मांगों को मान लिया है।

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