ट्रांसपोर्ट विभाग ने डीटीसी और क्लस्टर स्कीम की बसों और ऑटो रिक्शा को छोड़कर दिल्ली में रजिस्टर्ड अन्य सभी पब्लिक सर्विस वीकल्स और राष्ट्रीय परमिट वाले सभी प्राइवेट कमर्शल गुड्स वीकल्स के ओनर्स को बड़ी राहत देने वाला फैसला लिया है। परिवहन विभाग ने जीपीएस/जीपीआरएस ट्रैकिंग चार्ज (2800 रुपये) को ड्राइवर या ओनर से हटाया है। इतना ही नहीं, परिवहन विभाग ने डिम्ट्स से लेकर एनआईसी को पब्लिक सर्विस वीकल और कमर्शल गुड्स वीकल की निगरानी का काम भी सौंप दिया है।
इसके लिए मंगलवार को परिवहन विभाग और एनआईसी ने एक एमओयू साइन किया है. इसके अनुसार, वीकल ट्रैकिंग प्रोजेक्ट अब एनआईसी पूरी तरह से संभालेगा और गाड़ी चालकों या मालिकों से कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा। ट्रांसपोर्ट विभाग के इस निर्णय से लगभग 64 हजार कार मालिकों और ड्राइवरों को बहुत राहत मिलेगी।
ट्रांसपोर्ट विभाग के अधिकारियों ने बताया कि 31 मई 2015 को परिवहन विभाग ने डिम्ट्स को वीकल ट्रैकिंग प्रोजेक्ट के तहत सभी प्राइवेट कैब्स, बस और अन्य पैसेंजर वीकल और प्राइवेट कमर्शल माल वीकल में तयशुदा वेंडर से लगवाए गए जीपीएस/जीपीआरएस डिवाइस की निगरानी करने का काम सौंपा था। इन गाड़ियों की फिटनेस जांच के दौरान, डिम्ट्स ने बैक एंड मैनेजमेंट चार्ज के रूप में शुल्क लिया। परिवहन विभाग ने सालाना 1200 रुपये की फीस निर्धारित की, जिसमें अलग से टैक्स लगता था। जीएसटी मिलाकर यह खर्च प्रति वर्ष 1400 रुपये था।
जिन वाहनों के लिए यह खर्च निर्धारित किया गया था, वे दो साल में एक बार फिटनेस जांच से गुजरते हैं। ऐसे में, बुराड़ी स्थित वीकल इंस्पेक्शन यूनिट में किसी भी गाड़ी की फिटनेस जांच के लिए ड्राइवर या ओनर को जीपीएस डिवाइस के मैनेजमेंट चार्ज के रूप में 2800 रुपये देने पड़ते थे। दिल्ली में लंबे समय से कई ट्रांसपोर्ट यूनियंस, बड़े ट्रांसपोर्टर्स और कैब चालकों ने इसका विरोध किया है। उनका कहना था कि डिवाइस ट्रैकिंग के लिए डिम्ट्स फीस वसूलने के अलावा उनका कोई और कार्य नहीं है। कई गाड़ियों के जीपीएस उपकरण खराब होने पर भी फिटनेस जांच के दौरान उनसे शुल्क वसूला जाता था।