इस बार उत्तर भारत में मानसून कमजोर रहा, जिससे हरियाणा में कई जिलों में सूखा पड़ा है। वर्षा नहीं होने से भूमिगत जलस्तर और गिर गया है। Jun 29 और 30 से लेकर 29 जुलाई तक पिछले 5 से 8 वर्षों में हुई वर्षा से लगभग 75% कम हुई है।
इन दोनों राज्यों में इस समय धान की खेती होती है। इस फसल को लगभग २६ बार पानी देना चाहिए। जिसमें से 12 से 14 बार पानी वर्षा के दौरान मिलता है। और किसान ट्यूबवेल से बाकी पानी लेते हैं। लेकिन इस बार धान की फसल को केवल दो या तीन बार वर्षा का पानी मिला है। जो बाद में धान की फसल पर प्रभाव डालने लगा है। ट्यूबवेल से पानी लेने से किसान प्राकृतिक रूप से मिलने वाली फसल की मात्रा और गुणवत्ता को नहीं पा सकता।लेबर और दूसरा ट्यूबवेल से पानी की लागत दोगुना होती है। किसान हरपाल सिंह, सतपाल कौशिक और राजीव दुआ ने कहा कि इस वर्ष के हालात पिछले लगभग 15 वर्षों में नहीं हुए हैं। धान की खेती से लेकर अब तक केवल दो से तीन बार पर्याप्त वर्षा हुई है।
अब उनकी फसलें सूखने लगी हैं। क्योंकि इस फसल के लिए ट्यूबवेल में पर्याप्त पानी नहीं है भूमिगत जल काफी नीचे जा चुका है, इसलिए ट्यूबवेलों ने कई जगहों में पानी देना बंद कर दिया है। हरियाणा में दस लाख से अधिक किसान धान की खेती करते हैं और पूरी तरह से वर्षा पर निर्भर हैं।
हरियाणा कृषि विभाग के डिप्टी डायरेक्टर डॉक्टर आदित्य डबास ने कहा कि पिछले कई वर्षों के रिकॉर्डों को देखते हुए, 29 जून से 29 जुलाई तक मानसून सीजन जारी रहेगा। इस बार पंजाब और हरियाणा के अधिकांश क्षेत्रों में वर्षा 75% से 80% घटी है। यमुनानगर में इसी अवधि में मात्र 135 मिलीमीटर वर्षा हुई है, जबकि पिछले वर्ष 630 मिलीमीटर वर्षा हुई थी।