हरियाणा विधानसभा चुनाव की घोषणा होने से पहले सभी राजनीतिक दल अपनी-अपनी तैयारियों में जुटे हैं। चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित चुनाव की तारीखों पर भी आम जनता की नजर है। विधानसभा चुनाव की घोषणा से पहले हरियाणा सरकार को विधानसभा का सत्र बुलाना होगा, इस बीच महत्वपूर्ण जानकारी सामने आई है। ऐसा नहीं होने पर, आर्टिकल 356 के अनुसार सरकार स्वयं असंवैधानिक हो जाएगी।
यह संविधान में क्या कहता है और सत्र के दौरान कांग्रेस विधायक से बीजेपी में शामिल होने वाली किरण चौधरी और जेजेपी के तीन विधायकों का क्या होगा? हरियाणा विधानसभा के स्पेशल सचिव और संविधान के विद्वान रामनारायण यादव से हमने इन मुद्दों पर विशेष चर्चा की।
संविधानविद् रामनारायण यादव का कहना है कि नियमों के अनुसार हर छह महीने में किसी भी राज्य की सरकार को विधानसभा का सत्र बुलाना अनिवार्य है, जैसा कि हरियाणा में पिछला सत्र 13 मार्च को हुआ था। इसलिए राज्य सरकार को 12 सितंबर तक विधानसभा का सत्र बुलाना ही होगा। ऐसा नहीं होने पर हरियाणा सरकार पर आर्टिकल 356 लागू हो जाएगा, जो राज्य सरकार को असंवैधानिक घोषित करेगा और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा हुआ होगा।
यादव ने कहा कि सरकार चाहे तो सत्र को 24 घंटे के अंतराल पर भी बुला सकती है। वर्तमान समय में इसके लिए एकमात्र आवश्यकता है कि विधानसभा के सभी सदस्यों को सत्र की सूचना मिलनी चाहिए। इसलिए सरकार सत्र को 12 सितंबर से पहले भी बुला सकती है।
सुप्रीम कोर्ट में दिया एफिडेविट
हरियाणा में चुनाव प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, रामनारायण यादव ने बताया। चुनाव आयोग ने भी बैठकों का दौर शुरू किया है। हरियाणा के अलावा चुनाव झारखंड, महाराष्ट्र और जम्मू-कश्मीर में भी होंगे। Yadav ने कहा कि जम्मू-कश्मीर को सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट भी भेजा गया है, जहां चुनाव सितंबर तक होंगे। ऐसे में इन सभी राज्यों में चुनाव एक साथ ही होंगे, और चुनाव आयोग जल्द ही विधानसभा चुनाव की तारीखें घोषित करेगा।
रामनारायण यादव ने बताया कि कांग्रेस विधायक रहते हुए किरण चौधरी के भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने और विधायक पद से इस्तीफा नहीं देने को लेकर अब कांग्रेस के नेताओं की ओर से पिटिशन दायर की गई है, जिसमें सभी आवश्यक दस्तावेज भी जुड़े हुए हैं। ऐसे में, शेड्यूल 10 के पैराग्राफ 2-1-A में उनकी सदस्यता डिस्क्वालिफाई होती है। जेजेपी के तीन विधायकों का भी यही हाल है। यादव ने कहा कि, क्योंकि सबूत सब कुछ है। बिना सबूत के कोई निर्णय नहीं लिया जा सकता। दोनों पक्षों ने साक्ष्य प्रस्तुत किए होंगे, तो स्पीकर उन्हें सुनेंगे।