कांग्रेस विधायक रहते हुए भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने वाली किरण चौधरी को बीजेपी ने राज्यसभा के उपचुनाव में अपना उम्मीदवार घोषित किया है, लेकिन वह अभी भी दल बदल कानून के तहत है। कांग्रेस की ओर से किरण चौधरी की सदस्यता को लेकर दायर की गई याचिका अभी भी उनके पास लंबित है, इसलिए हरियाणा विधानसभा के अध्यक्ष ज्ञानचंद गुप्ता को पहले फैसला लेना होगा। कांग्रेस आगे का निर्णय विधानसभा अध्यक्ष के निर्णय के बाद ही ले सकेगी। यही कारण है कि अब विधानसभा से इस्तीफा देने के बावजूद किरण चौधरी. दल बदल कानून के दायरे में आती है। क्या अब भी किरण चौधरी की सदस्यता को लेकर कोई खतरा है। यदि ऐसा है तो उनके खिलाफ किस प्रकार से क्या कार्यवाही हो सकती है ? चलिए आपकों विस्तार से बताते हैं।कानून और संविधान के जानकार रामनारायण यादव ने बताया कि कोई भी नेता जिस दिन दल बदलता है, उसी दिन से उस पर दल बदल कानून लागू हो जाता है। किरण चौधरी पर भी विधायक पद से इस्तीफा दिए बिना दल बदलने वाले दिन से ही यह कानून लागू हो गया था। ऐसे मामले में कानून अलग-अलग है, लेकिन संविधान के अनुसार अयोग्यता ही बनती है। यादव ने कहा कि किरण चौधरी के मामले में विधानसभा अध्यक्ष के पास दो उदाहरण हैं। इनमें से पहला जनवरी 2005 का कृष्ण पंवार मामला है। इसमें उनके खिलाफ विधानसभा में दल बदल कानून के तहत अयोग्यता का केस चल रहा था। उसी समय उन्होंने त्यागपत्र दे दिया। विधानसभा अध्यक्ष ने इसमें उनके खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया।2019 में अनूप धानक ने नैना चौटाला पर दूसरा आरोप लगाया था। उस मामले में विधानसभा अध्यक्ष का इस्तीफा देने के बाद भी उन्हें अयोग्य करार दिया गया था। Yadav ने कहा कि किरण चौधरी के मामले में दो उदाहरण विधानसभा अध्यक्ष के सामने हैं, लेकिन संविधान में स्पष्ट है कि दल बदल कानून जिस दिन लागू होता है, उसी दिन से लागू होता है। इसलिए किरण चौधरी को भविष्य में नुकसान भी हो सकता है।